Monday, May 2, 2011

स्‍कूल जाने वाली मुसहरों की पहली पीढी

http://www.sarokar.net/2011/04/स्‍कूल-जाने-वाली-मुसहरों/

19 अप्रैल 2011 को सुबह साढे दस बजे नार्वे की एक पत्रकार केन और मैं सकरा शिक्षण केंद्र पर पहुंचे. यह शिक्षण केंद्र मुसहर बस्ती में चलती है. सकरा से 500 मीटर पहले ही हमें अपनी गाड़ी छोड़नी पड़ी क्योंकि आगे का रास्ता साईकिल लायक भी नहीं था. अब हम दोनों पैदल ही टेढ़े-मेढे रास्ते पर संभल-संभल कर चल रहे थे और एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे कि लोग बरसात में यहाँ कैसे चलते होंगे. दस मिनट का सफर बीस मिनट में तय करके हम वहां पहुंचे. देखा, दोनों अध्यापक बच्चों के साथ शैक्षिक गतिविधि में लगे हुए थे. हमलोग कमरे के बाहर खड़े होकर सारी गतिविधि देख रहे थे. थोड़ी देर बाद बच्चों ने हमें देख लिया. और उत्सुकतावस हमें देखते रहे. शायद मेरे विदेशी मित्र उनके कौतुहल का विषय थे. बच्‍चे आपस में बातें करने लगे. प्रमोदजी, जो वहाँ पर अध्यापक हैं, ने बच्चों का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करने के लिए हिंदी का शब्द लिखा हुआ कार्ड निकला और ज़ोर से पूछा, ‘बताओ कौन सा शब्द आयेगा?’ कुछ बच्चों ने कहा, ‘अ’. कुछ ने कहा ‘क्ष’. इस प्रकार सभी बच्चों ने कुछ न कुछ बताया. देख कर लगा कि सारे बच्चे अध्यापक के साथ जुड़े है और उनका आपस में ठीक से संवाद हो रहा है. प्रमोदजी ने इस बार कार्ड का कुछ हिस्सा छुपाया और कुछ हिस्सा बच्चों को दिखाते हुए उन्हें अक्षर पहचानने को कहा. बच्चों ने फिर से अक्षर को और विश्वास के साथ पहचाना. जिन बच्चों का ग़लत होता तो दूसरे बच्चे उनकी ग़लती बताते.


                                            
                                                   शिक्षण केंद्र में बच्‍चे
देखकर लगा कि बच्चे आपस में एक-दूसरे की बातें ध्यान से सुनते हैं. क्लास में बहुत अच्छा माहौल था. सभी बच्चो कि भागीदारी हो रही थी. इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी व अंको के चार्ट के साथ वही गतिविधि चलाई. बच्चे पूरा आनंद लेकर पढ़ रहे थे. इसके बाद उन्होंने एक-एक बच्चे को खड़ा करके चार्ट से अन्य बच्चों को पढाने के लिए कहा. उन्होंने बच्चो कि ग्रेडिंग भी कर रखी थी कि किन बच्चों का समूह सबसे तेज़ है, किनका मध्‍यम और किनका कमजोर है. लेकिन बच्चों को उस ग्रेडिंग के बारे में नहीं पता था. ग्रेड के हिसाब से वे बच्चो को अवसर दे रहे थे.

इसके बाद कई बच्चों ने हाव-भाव के साथ कविता सुनाई. अब बच्चों के साथ अध्यापक क्लास रूम से बाहर आ गए थे. सबको पता था कि अब क्या होने वाला है. वे बहुत उत्साहित थे. खेल शुरू होने वाला था. बच्चे गोला बनाकर खड़े हो गए. अध्यापक उनके बीच में खड़े थे. सब गोल दायरा बनाकर घूम रहे थे और अध्यापक बोल रहे थे, ‘मामा

खेल की बारी गए बाज़ार. क्या लाए, भाई क्या लाए?’ बच्चों का जवाब होता, ‘लड्डू’. फिर अध्यापक पूछते – कितने ? बच्चे बोलते – आप चाहें, जितने. तब अध्यापक बोलते – तीन. और बच्चे घूमना बंद करके तीन -तीन का ग्रुप बनाते. जो बच्चा ग्रुप नहीं बना पाता या ग्रुप से छूट जाता वह बाहर हो जाता. इसी प्रकार कई बार यही प्रक्रिया चलाई गई. फिर बच्‍चे दूसरे खेल के लिए हुए. इस बार फिर बच्चों ने गोला बनाया और अध्यापक ने एक बड़ा सा गोला लकड़ी से खीचा. सभी बच्चे उस गोले के बाहर खड़े हो गए और खेल शुरू हुआ.

अध्यापक ने कहा, ‘नदी’ और सभी बच्चे गोले के अंदर कूद गए. फिर अध्यापक ने कहा, ‘किनारा’ और सभी बच्चे गोले से बहार आ गए. इसी प्रकार जल्दी-जल्दी बोलने से कुछ बच्चे ग़लत कूदते तो वो बाहर हो जाते. और काफी देर तक खेल चलता रहा. अंत में एक बच्चा ही बचा और उसे विजेता घोषित किया गया. इस खेल के दौरान जो बच्चे बाहर हो गए थे वे लोग जो बच्चे खेल में बने थे उनका हौसला बढ़ाने के लिए चिल्ला रहे थे. सभी बच्चे बहुत खुश थे.

मुसहर बस्ती सकरा में ये पहली पीढ़ी है जो शिक्षा से जुड रही है. यहाँ पर कुल 45 परिवार है लेकिन कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है. क्योकि इनके बस्ती से 3 किलोमीटर तक कोई स्कूल नहीं है और जो है वो भी ठाकुर बस्ती में है. जब ये लोग वहां गए तो ठाकुरों ने इन्हें मारपीट कर भगा दिया. वे इन्हें पकड़कर जबरदस्ती अपने खेतों और घरों में कम करवाते थे. इसी खौफ़ से कोई भी बस्ती में नहीं जाता. ठाकुर लोग इनकी औरतों से भी जबरदस्ती करने का प्रयास करते. कई बार इन लोगों कि बस्ती में घुसकर इनको मारा-पीटा और इनके घर भी जला दिए थे.

                                          
                                                 खेल की बारी


‘मानवाधिकार जन निगरानी समिति’ ने इन बच्‍चों पढाने की बात की तो ये लोग बहुत खुश हुए. साथ ही इन्‍होंने डर भी व्‍यक्त किया कि ठाकुर लोग फिर से मारेंगे. लेकिन बातचीत के दौरान इन्हें बताया गया कि कानून के अनुसार कोई भी ठाकुर मुसहर को नहीं मार सकता. यदि कोई ऐसा करता है तो उसके लिए कानूनन बहुत ही कठोर सजा का प्रावधान है. जिसके बाद वो लोग अपने बच्चो को पढाने के लिए तैयार हो गए. वहां पर ‘ग्लोबल फंड फॉर चिल्ड्रेन’ व ‘मानवाधिकार जन निगरानी’ के सहयोग से बच्चों के पढ़ने के लिए 2 कमरों का स्कूल बनवाया गया जिसके लिए ज़मीन स्‍थानीय महतिम मुसहर ने दी. आज स्कूल चल रहा है. जब बच्चे पढते हैं और खेलते हैं तो पूरा समुदाय खड़ा होकर देखता है और खुश होता है. जब हमने वहाँ कुछ लोगों से बात की तो महतिम ने कहा ‘अब हमारे बच्चे भी पढ़-लिख कर होशियार हो जायेंगे. वे अब हमारे साथ ईंट भट्ठे पर काम करने नहीं जायेंगे. अब ये भी बड़े होकर साहब बनेंगे और किसी का अत्याचार नहीं सहेंगे’

                                                                            एक झलक
मुसहर बस्‍ती की एक झलक अनुप कुमार श्रीवास्‍तव बनारस में रहते हैं और पिछले कुछ वर्षों से मानवाधिकार के मसले पर सक्रिय हैं. इनसे compujai.vns@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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